रविवार, 6 दिसंबर 2009

हिजड़े




एक

कहना मुश्किल है कि वे कहाँ से आते हैं

खुद जिन्होंने उन्हें पैदा किया
ठीक से वे भी नहीं जानते उनके बारे में

ज़्यादा से ज़्यादा
पारे की तरह गाढे क्षणों की कुछ स्मृतियाँ हैं उनके पास
जिनकी लताएँ फैली हुई हैं
उनकी असंख्य रातों में

लेकिन अब
जबकि एक अप्रत्याशित विस्फोट की तरह
वे क्षण बिखरे हुए हैं उनके सामने
यह जानकर हतप्रभ और अवाक हैं वे
कि उनके प्रेम का परिणाम इतना भयानक हो सकता है

लेकिन यह कौन कह सकता है
कि सचमुच उनके वे क्षण थे
प्रणति और प्रेम के?

क्या उनके पिताओं ने
पराजय और ग्लानि के किसी खास क्षण में किया था
उनकी माँओं का संसर्ग?

क्या उनकी माँओं की ठिठुरती आत्मा ने
कपड़े की तरह अपने जिस्म को उतारकर
अपने-अपने अनचाहे मर्दों को कर दिया था सुपुर्द?

क्या उनके जन्म से भी पहले
गर्भ में ही किसी ने कर लिया उनके जीवन का आखेट?

दो

वासना की एक विराट गंगा बहती है इस धरती पर
जिसकी शीतलता से तिरस्कृत वे
अपने रेत में खड़े-खड़े
सूखे ताड़-वृक्ष की तरह अनवरत झरझराते रहते हैं

संतूर के स्वर जैसा ही
उनकी चारो ओर
अनुराग की एक अदृश्य वर्षा होती है निरंतर
जिसे पकड़ने की कोशिश में
वे और कातर और निरीह होते जाते हैं

अंतरंगता के सारे शब्द और सभी दृश्य
बार-बार उन्हें एक ही निष्कर्ष पर लाते हैं
कि जो कुछ उनकी समझ में नहीं आता
यह दुनिया शायद उसी को कहती है प्यार

लेकिन यह प्यार है क्या?

क्या वह बर्फ़ की तरह ठंडा होता है?
या होता है आग की तरह गरम?
क्या वह समंदर की तरह गहरा होता है?
या होता है आकाश की तरह अनंत?
क्या वह कोई विस्फोट है
जिसके धमाके में आदमी बेआवाज़ थरथराता है?
क्या प्यार कोई स्फोट है
जिसे कोई-कोई ही सुन पाता है?

इस तरह का हरेक प्रश्न
एक भारी पत्थर है उनकी गर्दन में बँधा हुआ
इस तरह का हरेक क्षण ऐसी भीषण दुर्घटना है
कि उनकी गालियों और तालियों से भी उड़ते हैं खून के छींटे

और यह जो गाते-बजाते ऊधम मचाते
हर चौक-चौराहे पर
वे उठा लेते हैं अपने कपड़े ऊपर
दरअसल वह उनकी अभद्रता नहीं
उस ईश्वर से प्रतिशोध लेने का उनका एक तरीका है
जिसने उन्हें बनाया है
या फिर नहीं बनाया

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक अच्छी रचना लिखी है आपने। हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ। वैसे इन पर आजकल लिखता कौन है। मैंने भी कभी एक तुकबंदी की थी अपने ब्लोग पर।

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  2. yoon hi tahalate hue tumahare blog par aa gaya to tumahari nayi kavitaain(haan mere liye nayi hi samjho) parte hue achcha laga.ab beech beech mein samay nikalkar inka anand le sakunga. sab maze mein to.ghar-parivaar-naukri-chakri-ishta-mitra aadi aadi.
    sanjay joshi

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  3. नजरिये मे आए फर्क को हम कैसे समझते है और कब सामाजिक धारणाओं से बाहर निकलने का प्रयास करते हैं? इन्ही कुछ पहलुँओं से हम सोच के उन धागों को खीँच पाते हैं जिसने हमारा नज़रिया किसी चरण तक पहुँचता है।
    अभी काफी दूर हैं आप शायद, क्या किसी ऐसे शख़्स का संवाद यहाँ पढ़ने को मिल सकता है?

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  4. नजरिये मे आए फर्क को हम कैसे समझते है और कब सामाजिक धारणाओं से बाहर निकलने का प्रयास करते हैं? इन्ही कुछ पहलुँओं से हम सोच के उन धागों को खीँच पाते हैं जिसने हमारा नज़रिया किसी चरण तक पहुँचता है।
    अभी काफी दूर हैं आप शायद, क्या किसी ऐसे शख़्स का संवाद यहाँ पढ़ने को मिल सकता है?

    किरण

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  5. शुक्रिया रिया जी!अगर थोड़े तफसील से आप अपनी बात रखतीं,तो उस पर विचार करना आसान होता मेरे लिए।सामाजिक धारणाओं और नज़रिये वाली बात ठीक कही आपने।लेकिन मैं दूर हूँ किससे?क्या आप यह कहना चाहतीं हैं कि मैं सामान्य सामाजिक बोध से आक्रांत हूँ?अगर हाँ,तो मेरा निवेदन है कि एक बार और पढें इसे। आभार!

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  6. kisi ke hone or kisi ke na hone par chawiya apna pratibimb kese rupantrit kar pati he ? . bahut udan me ho jo sheher ko sochne se bhi bahar hai .kisi chawi ko samjhna or uske abhiwakti ko ubharna apne me kampan peda karne wali jadibuti he . or aap sewan kar chuke hai bas niranter kate jaeye . achha laga is chawi se rubaru ho kar

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  7. नजरिये मे आए फर्क को हम कैसे समझते है और कब सामाजिक धारणाओं से बाहर निकलने का प्रयास करते हैं? main is sawal ko sochne ke liye ishara kr rahi thi...bcoz aap jis charan tak pahunche hai wo bakhubi najar ata hai ek khubsurat andaj me jo apne bayann kiya hai...

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