रविवार, 12 सितंबर 2010

नाम तो उसका ज़ाफर है



डाक्साब, नाम तो उसका जाफर है
लेकिन इतना विनम्र
और इतना तेजस्वी है लड़का
कि लगता ही नहीं कि वह जाफर है

कहीं भी देख ले
आकर सबसे पहले चरण स्पर्श करता है

और माँस-मछली के भक्षण की बात तो जाने दीजिए
कहता है कि अंडे से भी बास आती है

और सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो ये सुनिए-
अपने प्रस्तावित शोधोपाधि के लिए जो विषय चुना है उसने
वह कबीर या रसखान या जायसी नहीं
बल्कि अपने बाबा तुलसी हैं

…जी,जी हाँ…
बिल्कुल ठीक कहा आपने
कमल तो सदैव कीचड़ में ही खिलता है……

8 टिप्‍पणियां:

  1. तो आप यही पढ़ाते हैं ... तुलसी आपके अपने हुए...किसी जाफर के नहीं ....

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  2. कमल और कीचड़ के बहाने बहुत सटीक और जरूरी बातें कही आपने...राष्ट्रवादी होने की जरूरी शर्तों के बारे मे..जाहिर है बहुत से कान सहज नही महसूस करेंगे उसे सुनने मे..और इसे और डायरेक्ट तरीके से कहा जा सकता था..
    और इतना तेजस्वी है लड़का
    कि लगता ही नहीं कि वह मुसलमान है

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  3. जी,ठीक कहा आपने…लेकिन कविता को और मुखर करता तो शायद वह मेरी नहीं रहती…

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  4. shandar kavita krishnmohan ji...mujhe kisi badlav ki zaroorat nahi lagati...Sublime aur marak!

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  5. जो मांस माछी खाते है , जिन्हें अंडे से बस नहीं आती है , जो शोध के लिए तुलसी को नहीं चुनते हैं और जो जाफर भी नहीं हैं ......
    लेकिन वे कमल हैं .
    कमल होने की शर्त कीचड़ नहीं है ,
    मज़बूरी हो सकती है .
    कवि का सोच विराट होना चाहिए .
    शुभकामनाये .

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  6. भाई ! आखिर आपकी कवितायें सुकून से पढने और तुरंत टिप्पणी देने का एक प्लेटफार्म बन गया ..धन्यवाद
    आपकी ये कविता एक साहसिक अभिव्यक्ति है.. इस विषय पर कुछ भी कहना किसी न किसी पूर्वाग्रह को दावत देता है. पर कवि तो कहेगा ही .. बच ही नहीं सकता.. कहते रहो, हम सब साथ-साथ हैं..

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  7. बेनामी हिंदी के ही कोई होंगे, हो सकता है वे वही हों जो इस कविता में वाचक है।

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